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ठंड पर कविता - सर्दी पर कविता - New Poem on Winter in Hindi

सर्दी पर कविता - ट्रेंडिंग ज्ञान कविता ठंड पर कविता - Hindi Poem on Winter    ठंड का सवेरा आया, ओश की चादर ओढ़े; कापती ठिठुरती ठंडी में, मिल रहें सब हाथ जोड़े। होत दुपरहरी खाना खा के, खुली आसमान में चादर ओढ़े, बात चीत कि आड में धूप शेक रहें थोड़े - थोड़े। अर्क तर्क का हुआ समापन, कड़क चाय के साथ मे; मां बोले ध्यान रख आपन, ठंड लगेंगे अभी और थोड़े! आलस भार रही इस छोटे दिन में शीत की रात बीत रही पैर मोड़ें। सर्दी पर हिंदी कविता ऋतु चाहे कोई सा भी हो, हर ऋतु का एक अलग ही मजा होता है। यह कविता शरद ऋतु पर निर्धारित है जिसमें मैंने सर्दी के मौसम के दिनों कि दिनचर्या को एक कविता के अंदर समाहित करने का कोशिश किया है। इस कविता में मैंने सर्दी के मौसम में सुबह, दोपहर, शाम और रात की कुछ खास पलों को एकत्रित किया है। ये अक्सर आपको भारत के गावों में देखने को मिलता है। यदि आप भारत से है तो कहीं न कहीं आप भी इसे खुद से रिलेट कर पा रहे होंगे।  ओश मतलब शीत, दुपहरी मतलब दोपहर का समय और अर्क मतलब सूर्य। ये कुछ शब्दार्थ जो कि आपको इस 14 लाइन की गाथा (कविता) को पढ़ने और समझने में मदद करे...

Hindi poem on Independence day

Independence day Poem in Hindi  Hello friends, finally we are on 💯 posts and on this independence day i have written a poem on this patriotic day. The day when new India emerged. After all you all know better about 15 August so, I move to the point which is Hindi poem on Independence day. Independence day Poem in Hindi यह है मेरे वतन की कहानी , मेरी खुद की ज़ुबानी, एकता जिसकी जान है , पर भिभिंता इसकी पहचान है। अरदास की आवाज के साथ जुड़ी हुई अज़ान है, यही श्मशान है तो यही कब्रिस्तान है, खुशनसीब है वो को बसा हिन्दुस्तान है।। कहकर खुद को भारतीय , होता है मुझे गर्व, मै उस देश का वासी हूं , जहां हर रोज़ होता है एक पर्व। भले ही मेरा भारत अब हो गया है इंडिया, पर आज भी यहां फूड़ते है माखन कि कई हांडिया। Hindi poem on Independence day पड़ोसी की जहां करते है खातिरदारी,  जो विरुद्ध इसके करते है साझेदारी। करके सर्जिकल स्ट्राइक एक को दिखाई उसकी औकात, दो दूसरे को दी थी मुक्केबाजी में हर की सौगात। जिसकी ताकत से ना कोई अब दूजा अनजान है, खुशनसीब है वो को बसा हिन्दुस्तान है।। करने में जिस...

Hindi Poem on School Life | School Wali Dosti

SCHOOL WALI DOSTI     (School ke  Din)  A poem By BaaMaa's Beta Yrr wo school ke din... Nhi rhta tha mai active unn dino... Lgta tha...stability to neutron me he h...so neutral rho... Meri seat fix hua kra tha...uss 2nd bench k kone me... Break me nikal jate the time... sirf uss schl ke bgal wali building niharne me... Pta nhi kyu! abb ye sub yaad aata h... Ek baat batata hu...pta h abb usse bhut miss krta hu... Uss lunch ko...jisne dosti ke gzb misal pes ke... Abb wo lunch ke kmi ho gyi h...jisme lunch kholte he khana gayab... Lunch ka owner... khole lunch ko drr drr ke...orr kamine dost log... loote usse hath bhar bhar ke.... Kbhi dekha nhi tha aisa chamatkaar jaha Roti hath lge na lge...dost le ke subjiyan ho jata faraar... Firr suru hoti uski business...jaha roti do orr thodi se subji lo...(yrr abb sada roti koi thode khata h) Agar apko sunane lgu lunch time k kisse...